
एक शिष्य के गुरु के प्रति आत्मीय समर्पण को दर्शाती यह कृति “आत्मान्वेषी”अपने आपमें अद्भुत है| मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज ने अपने भावों की तुलिका से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के जीवनवृत्त को अंकित किया है | आचार्यश्री के विषय में उन्होंने जो पढ़ा-सुना,उनका सामीप्य पाकर जो देखा और उनकी कृपा से जो पाया,वह सभी कुछ मुनिश्री ने इस पुस्तक में एक नन्हें बालक की भांति श्रद्धा से भरकर प्रस्तुत किया है |
मुनि श्री की पवित्र भावनाओं की गहराई इस कृति में ऐसी समाई हुई है कि इसे पढ़ते –पढ़ते अपने संसार का बंधन और मन की गांठ भी खुलती जान पड़ती है और अनायास ही मुनिश्री के प्रति मन श्रद्धा से भर आता है |
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