
मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज के “एकीभाव स्तोत्र” पर दिए गए प्रवचनों का संकलन इस पुस्तक में किया गया है | भक्त का भगवान के प्रति कितना आत्मीय समर्पण हो सकता है,यही संवाद प्रस्तुत पुस्तक में वर्णनीय है| वादिराज मुनिराज की भक्ति की माला को अपने शब्दों में पिरोकर मुनिश्री ने जन-जन को सच्ची श्रद्धा के धागे में बांध लिया है |
मुनिश्री के शब्दों में “ भगवान के स्वरुप में इतना एकाकार होना कि वह स्वरुप ह्रदय में समा जाए और कभी ह्रदय से हटे ही नहीं – यही भक्ति की सफलता है” |
भक्ति की गहराई में मुनिश्री की वाणी के माध्यम से हम उतर सके,यही इस पुस्तक को प्रकाशित करने का उद्देश्य है |
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